(चित्राभार इन्टरनेट)
बेचैन करवटों ने चादरी सिलवटों को गहरा दिया,
रात पिसती रही जागकर चाँद ने पहरा दिया।।
तलबगारी तेरे नाम की दावानल सी भड़कती रही,
हर सांस बड़ी गर्म थी धड़कनो को ठहरा दिया।।
उम्मीद एक बस छूअन की नस नस में उमड़ती रही,
दूर बहुत वह चाँद था बस आह संग कहरा दिया।।
शय डूबी हुई तेरे जिस्म में रह रह कर मचलती रही
तड़पनो को समेट कर एक ग़ज़ल को बहरा दिया।।
सरदियां मौसमे इश्क़ की तन्हाईयों में ठिठुरती रही
लिहाफ़ मेरे जिस्म का कहीं और था फहरा दिया।
लिली 🌷
बेचैन करवटों ने चादरी सिलवटों को गहरा दिया,
रात पिसती रही जागकर चाँद ने पहरा दिया।।
तलबगारी तेरे नाम की दावानल सी भड़कती रही,
हर सांस बड़ी गर्म थी धड़कनो को ठहरा दिया।।
उम्मीद एक बस छूअन की नस नस में उमड़ती रही,
दूर बहुत वह चाँद था बस आह संग कहरा दिया।।
शय डूबी हुई तेरे जिस्म में रह रह कर मचलती रही
तड़पनो को समेट कर एक ग़ज़ल को बहरा दिया।।
सरदियां मौसमे इश्क़ की तन्हाईयों में ठिठुरती रही
लिहाफ़ मेरे जिस्म का कहीं और था फहरा दिया।
लिली 🌷
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें