रविवार, 17 दिसंबर 2017

ऐ ज़िन्दगी! तू मेरे झरोखों को किवाड़ क्यों नही देती,,,,

                           (चित्राभार इंटरनेट)

पिस रही हूँ
मैं भी पत्थरों
के बीच पर,
हिना सी रंगत
तो नही देती?
ऐ ज़िन्दगी !
तू मुझे मेरी
मुहब्बत तो
नही देती,,,

खूँटियों से बाँध
देती है किस्मत,
कभी बेखुदी में
बहक के चल
भी दूँ तों,
रस्सी की लम्बाई
तक भटका कर
खींच लेती है,
जब बेखुदी देती है
ऐ ज़िन्दगी!
तो उन खूँटियों
को उखाड़ क्यों
नही देती,,,?

खिड़कियों के
होते भी रोशनदानों
का वजूद बनाया
हवा और रोशनी
का संतुलन बनाया
पर मैं जो बनाऊँ
यही हिसाब
ऐ जिन्दगी!
तू मेरे झरोखों
को किवाड़ क्यों
नही देती,,?

अरमानों के पंख
दे दिये फड़फड़ाने
को,एक खुला
आसमान भी सजा
दिया आगे,
टकटकाई आंखों
में कई भी सपने जागे?
ज्यों उड़ान भरने
को पंख फैलाती हूँ
ऐ ज़िन्दगी!
तू मेरे पिंजरे में
सलाखों की टूटी
दीवार क्यों
नही देती,,,?

लिली 

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