गुरुवार, 15 मार्च 2018

दास्तानी परिन्दे

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

रह रह कर याद
आ जाते हैं,,,
बड़ी ज़ोर-ज़ोर से
पर फड़फड़ाते हैं,,
दिल की कैद में बंद
कुछ दास्तानी परिन्दे,,

क्या करूँ?????
आज़ाद कर दूँ????
खुले आसमान में उड़ा
इन्हे आबाद कर दूँ,,???

पर ये जाएगें कहाँ???
क्या किसी और के
दिल को पिंजरा बनाएगें??

फिर थोड़ा स्वार्थ सा
है जागता,,,
मुझे क्या,,,,?जाएं जहाँ
इनका जी चाहे,,,!!!

इनकी फड़फड़ाहट
मुझे परेशान करती है,,
भूलना चाहती हूँ
जिन धुंधली पड़ी
यादों कों,,,,,
ये शोर मचा कर उन्हे
दोहराते हैं,,,
और फिर से भूले चेहरों
के स्केच बनाते हैं,,,,

कभी तो प्यार से दुलार
इन्हे सहलाती हूँ,,
पर सच कहूँ,,,
कभी-कभी बहुत अधिक
खीझ जाती हूँ,,,,!!!

हिदायत देकर कुछ दिन
और देखती हूँ,,,
शायद मान जाएं मेरी बात,,

पर सच यह भी है,,,
इनके बिना मेरा दिल भी
खाली हो जाएगा,,
और सूनेपन को भरने के
खातिर फिर इक नई
क़ैदगाह बनाएगा,,,

अब फंस गई हूँ
अपनी ही बातों में,,,😃
तो चलो,,,,
जाने देते हैं,,,,,
जैसा चल रहा,,,
वैसा ही चलने
देते हैं,,,,,,,,

लिली

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