गुरुवार, 15 मार्च 2018

मन गिलहरी 😊

                       (चित्राभार इन्टरनेट)

प्रीत हरीतिमा लिए
अनोखी
साजन तुम्हरे मन की
गलियां,,,
नरम घास का बिछा
गलिचा,
स्नेह भरित जूही की
कलियां,,,

बना गिलहरी सा
मन मेरा,,
फुदक रहा हर डाल
पात पर,,
अधिकार समझ मैं
फिरूँ निडर सी,,,
बैठ शाख पर तोड़ूँ
फलियां,,,

साजन तुम्हरे मन की
गलियां,,,,,,


क्या तुमने सहलाया
मुझको,,?
पीठ पे उभरी स्पर्श
धारियां,,,
गझिन पूछ लहराकर
भागूँ,
लचक गई हैं लाज से
डलियां,,,

साजन तुम्हरे मन की
गलियां,,,,,

प्रेम तुम्हारा पाकर
प्रीतम,
चपल भईं मेरी स्वर-
ध्वनियां,,
दिखने में मैं लगती
भोली,,
तुम संग जागी मन की
रंग-रलियां,,

साजन तुम्हरे मन की
गलियां,,

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