बुधवार, 21 मार्च 2018

पीले लिली

                      (चित्राभार इन्टरनेट)

🌼'पीले लिली'🌼
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रात भर ओस में भिगी तुम्हारी पंखुड़ियां,,,सूरज की पहली किरण के पड़ते ही,,जैसे धुली-धुली सी,,,ताज़गी से भरपूर दिखती हैं,,,। पत्तों पर अभी भी कुछ बूँदें बिखरी हैं शबनम की,,रात की निशानी सी,,,,,अरूणाई से रौशन चमक रही हैं मोतियों सी,,,,,।
        अपनी खिड़की से मैं अक्सर देखती हूँ ,,नीचें लाॅन की हरी घास पर बीच-बीच में बड़ी अल्हड़ता से उगे हुए 'पीले लिली' के पौधे,,,। मुझे बहुत भाते हैं,,। हरी घास पर थोड़ी थोड़ी दूर पर छोटे-छोटे 'पीले लिली',,,,।
    रंगों का यह चटखीला समायोजन,,,,,आह!!! मन की आँखों तक कों चौंधिया देता है,,,। पुष्प के रंध्र से एक अद्भुत प्रकाश प्रस्फुटित होता है,,,जो समस्त इन्द्रियों को खुद में खींच लेता है। एक छोटा सा पुष्प सम्मोहन की विस्मयकारी प्रतिभा से परिपूर्ण।
        कैसे मनमौजी पौधे हैं,,,,!!! इन्हे किसी ने संभाल कर,,संजोंकर नही रोपा यहाँ,,,!! ना ये किसी खास देखभाल की चाहत रखते हैं,,। अपने मौसम के साथ खुद ही खिल जाते हैं,,,और मौसम के जाते ही,, खुद ही सूख कर गायब से हो जाते हैं,,,। घास के गझिले सतही झुरमुटों के बीच से निकला,,, एक सीधे ,सुकोमल तने पर खिला 'लिली',,, ऐसा लगता हैं,,भीड़ में चमकता एक अलग,अनूठा,सौम्य व्यक्तित्व,,! जिसका मूल बहुत साधारण और सामान्य,,,सतही घास के झुरमुटों से घुला मिला,,,,। परन्तु जब वह धीरे-धीरे विकसित होता है,,पीले पुष्पों से सुशोभित होता है,,,पुष्प-मंडल पर एक आभा लिए,,रात्रि के आकाश में चमकीले सितारे सा टिमटिमाटा है
             मन को वशीभूत करने जैसी कोई खुशबू नही होती,,इनमें,,,हाँ!! शायद एक बहुत ही स्वाभाविक सी देहगंध ज़रूर होती है,,,जिसे बस महसूस किया जा सकता है।
       मैने पाया है कि-'पीली लिली' का यह मनमौजी पौधा तीव्र सुगंध ना होते हुए भी,,," मेरे मन को महकाता है"।

इसलिए आज सोचा,, 'महकते मन' को 'पीले लिली' से सजा दूँ🌼🌼🌼🌼
लिली🌼

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