शनिवार, 22 सितंबर 2018

आश्विनी अनुभूति,,,,



अश्विन मास के लगते ही,,,प्रकृति जैसे देवी-देवताओं के धरा आगमन की तैयारी में जुट जाती है। गणेशोत्सव के साथ शुभ का शंखनाद आरम्भ हो जाता है।
       आकाश का नीलाभ जैसे खुद को श्रावणी वृष्टि से धो पोछकर नीलम रत्न सा चटख चमकदार हो जाता है। ग्रीष्म के ताप से वाष्पित बिन्दुओं से भरे काले मेघ,,,,बरस कर भारमुक्त हो चुके हों जैसे,,,सब पंतग से हल्के हो कर श्वेतमाल से नील गगन पर इधर-उधर उत्सव की तैयारी में जुटे ,,तत्परता से तैरते नज़र आने लगते हैं।
          आसमान पर जैसे होड़ मची है उत्सवी शामयाना सजाने की। धरा ने भी खुद का श्रृंगार उतनी ही कुशलता से करना आरम्भ कर दिया है। धुले-धुले से गाछ-पात,,,हरित दूब के नरम गलीचे,,,हरश्रृगांर के फूलों से लदे पेड़,,जो  हवा के स्नेहिल स्पर्श से किसी नव यौवना की चंचल हंसीं से बिखर पड़ते हैं घास पर। हवा का नटखट झोंका भर कर स्वयं में उन शिवली का सुवास बह निकलता है आत्मशीतल कर अन्यत्र कहीं। दूब का फैला आंचल एकत्र कर प्राजक्ता के फूल,,,गुथने लग जाते हैं पुष्पमाल,,,देवी को अर्पित करने हेतु।
              नदी के जल से भर अपने यौवनी उन्माद में किल्लोल करती अलमस्त बही जा रही,,,। सूर्य की रश्मियों की गुनगुनाती ऊष्मा से हो उल्लासित उसकी अल्हड़ता मृणालिनी बन चली है। धरा निकली है नहा कर नदिया के तट पर,,और धारण किए हैं लहलहाते कास-पुष्पी वसन। जिसका लहराता आंचल बार-बार उद्धत है आकाश  छूने को।
       उधर गांव में ढाकियों ने शुरू कर दिया है अभ्यास,,, दे रहे हैं दिन-रात ढाक पर एक नव आशा की थाप,,,,,!! इस बार 'माँ' आएगीं उनके लिए लेकर शुभ उन्नत जीवन का आशीर्वाद। जिससे दूर होंगें उनके संताप। छोटे बालकों हाथों में लिए कास्य थाल,,मिला रहे अपने पितृ संग ताल,,,,उन्हे है आस इसबार माँ लाएगीं उनके लिए स्वादिष्ट भोग-प्रसाद। स्त्रियां मन में संजोने लगी हैं नए स्वप्न , स्वामी कमा कर लाएगा कुछ अधिक 'मूल' इसबार,,,साथ होंगें  नूतन वस्त्र,आलता-सिन्दूर । उनका असल उत्सव तो शुरू होता है 'माँ' के वापस जाने के उपरान्त । जब लौट कर आते हैं उनके स्वामी परदेश से ।
          हर हृदय में घुलने लगी है उत्सवी श्वास,,होंगें कितने ही परिवार एकत्र एक वर्ष बाद। वयोवृद्ध माँ-पिता आशान्वित हैं,,,आने वाले हैं पुत्र-पुत्रवधु और पोते-पोतियां। सब मिलकर बिताएगें कुछ सुखद क्षण फिर एकबार।
       धरा,गगन,मानव मन सब जुट गए हैं 'देवी के आगमन' की तैयारी में।
 आज मोन आमार ओ होए एलो पूजो-पूजो(आज मेरा भी मन पूजा की पूर्वानुभूतियों से आन्दोलित हो उठा)।
  मेरे मन का आकाश भी आश्विनी आभास से आनंदित हो नर्तन कर उठा।

🌷दुर्गा दुर्गा ⚘

1 टिप्पणी:

  1. गद्य लेखन की प्रत्येक पंक्ति रसभरी है। शब्दों को चुन चुन कर वाक्य में सजाया गया है। प्रत्येक पंक्ति एक दूसरे से जुड़ी हैं, एक दूजे की पूरक हैं। देवी आगमन की तैयारियां और व्यक्तियों की मनोकामनाओं को पूर्ण रूप से दर्शाने में सफल लेखन। भावुकता भी है पर नियंत्रित। बखूबी लिखा गया है।

    जवाब देंहटाएं