(चित्राभार इन्टरनेट)
#_भावुक_कर_गया_दृश्य
#मेट्रो_यात्रा
ऐसे बिना अनुमति के किसी तस्वीर नही खिंचनी चाहिए,,, पर मैं रोक नही पाई,,और मेट्रो रेल में बैठे एक यात्री परिवार की फोटो सबसे नज़र बचाकर खींच ली। पिता की वात्सल्यमयी गोद में कितने सुकून से सोता हुआ बचपन😊। बहुत देर से मैं इस निश्चिन्त पितृआगोश में सोए बालक को निहारती रही,,,शायद बच्चे की तबीयत खराब थी,,मेट्रो के वातानुकूलित परिवेश में उसे ठंड लग रही थी,,इसीकारण एक शाॅल में किसी कंगारू के शावक सा अपने पिता के गोद में सिकुड़ कर सो रहा था।
बीच-बीच में ट्रेन के अनाउन्समेंट से चौंककर इधर-उधर ताकती उसकी भोली मासूम आँखें,,,वापस खुद को गुड़मुठिया कर पुनः अपने सुरक्षित,संरक्षित घेरे में सो जा रही थीं।
जेहन में एक ख्याल का अकस्मात अनाउंसमेंट हो गया,,अह्लादित मुस्कान भाव विभोर हो खुद के लिए भी ऐसे वात्सल्यी सुरक्षित आगोश के लिए तड़प उठी😊।
व्यस्क होकर हम कितना कुछ पाते हैं,,, आत्मनिर्भरता, स्वनिर्णय की क्षमता, अपनी मन मर्ज़ी को पूरा करने की क्षमता,, पर सब कुछ शायद एक असुरक्षा के भय के आवरण के साथ,,,उस निश्चिंतता का शायद अभाव रहता है,,,के यदि असफ़ल हुए,,या ठोकर लगने को हुए तो एक सशक्त संरक्षण पहले ही अपना हाथ आगे बढ़ा उसे खुद पर सह लेगा,,,पर हमें कुछ नही होने देगा,,,,,!!!!
जब शिशु पलटी मारना सीखते हैं,,,तो अभिभावक बिस्तर के चारो तरफ़ तकिए लगा देते हैं,,ताकि वे नीचे ना गिर जाएं,,,जब चलना सीखते हैं तो हर पल की चौकसी बनाएं रखते हैं,,,, कहीं टेबल का कोन ना लग जाए,,कहीं माथा ना ठुक जाए,,।
मुझे याद है मेरे घर के बिजली के कुछ स्विच बोर्ड नीचे की लगें थे,,और बड़े वाले बेटे ने घुटनों के बल चलना सीखा तो,,वह बार-बार उन स्विच के प्लग प्वांइट के छेदों में ऊँगली डालने को दौड़ता था,,। मुझे सारे बोर्ड ऊपर की तरफ़ करवाने पड़े। और भी बहुत कुछ रहता है,,, जिन पर भरपूर चौकसी रखनी पड़ती है अभिभावकों को,,जिससे शिशु का बचपन निश्चिंतता के परिवेश में पोषित और पल्लवित हो। ऐसा बहुत कुछ हम व्यस्क होने के बाद खो देते हैं।
इस दृश्य को देखकर आँखे भर आई,,,,,,,, लगा जैसे,,पृथ्वी के विलुप्त होते सुरक्षा आवरण ओज़ोन सी मेरा भी,,,या हम सभी जो व्यस्क हो चुके हैं,,जो आत्मनिर्भर हो चुके हैं,,,,उनकी वह 'अभिभावकीय ओज़ोन लेयर',,, विलुप्त होती जा रही है।
अब हम स्वयं अभिभावक बन चुके हैं,,,अब हमें अपने बच्चों को यह सुरक्षित एंव निश्चिंतता का वात्सल्यमयी आवरण प्रदान करना है,,,उन्हे उसी तरह जीवन पथ की ऊष्णता और आद्रता सहने के काबिल बनाना है जैसे हमारे अभिभावकों ने हमें बनाया।
माँ-बाबा तो सशरीर इस जगत में नही,,पर एक आभासी विश्वास मन में सशक्तता से आसीन है,,,वे जिस लोक में हैं,,,अपने आशीर्वाद से आज भी अपना वात्सल्यमयी घेरा बना कर हर बाधा, दुरूहता,चुनौतियों, कठिनाइयों से निपटने का संबल दे रहे हैं,,,और मैं इसी फोटो वाले बालक सी अपने अभिभावक की गोद में गुड़मुठियाए निरविकार निश्चिंतता से सो रही हू😊
लिली🌿
#_भावुक_कर_गया_दृश्य
#मेट्रो_यात्रा
ऐसे बिना अनुमति के किसी तस्वीर नही खिंचनी चाहिए,,, पर मैं रोक नही पाई,,और मेट्रो रेल में बैठे एक यात्री परिवार की फोटो सबसे नज़र बचाकर खींच ली। पिता की वात्सल्यमयी गोद में कितने सुकून से सोता हुआ बचपन😊। बहुत देर से मैं इस निश्चिन्त पितृआगोश में सोए बालक को निहारती रही,,,शायद बच्चे की तबीयत खराब थी,,मेट्रो के वातानुकूलित परिवेश में उसे ठंड लग रही थी,,इसीकारण एक शाॅल में किसी कंगारू के शावक सा अपने पिता के गोद में सिकुड़ कर सो रहा था।
बीच-बीच में ट्रेन के अनाउन्समेंट से चौंककर इधर-उधर ताकती उसकी भोली मासूम आँखें,,,वापस खुद को गुड़मुठिया कर पुनः अपने सुरक्षित,संरक्षित घेरे में सो जा रही थीं।
जेहन में एक ख्याल का अकस्मात अनाउंसमेंट हो गया,,अह्लादित मुस्कान भाव विभोर हो खुद के लिए भी ऐसे वात्सल्यी सुरक्षित आगोश के लिए तड़प उठी😊।
व्यस्क होकर हम कितना कुछ पाते हैं,,, आत्मनिर्भरता, स्वनिर्णय की क्षमता, अपनी मन मर्ज़ी को पूरा करने की क्षमता,, पर सब कुछ शायद एक असुरक्षा के भय के आवरण के साथ,,,उस निश्चिंतता का शायद अभाव रहता है,,,के यदि असफ़ल हुए,,या ठोकर लगने को हुए तो एक सशक्त संरक्षण पहले ही अपना हाथ आगे बढ़ा उसे खुद पर सह लेगा,,,पर हमें कुछ नही होने देगा,,,,,!!!!
जब शिशु पलटी मारना सीखते हैं,,,तो अभिभावक बिस्तर के चारो तरफ़ तकिए लगा देते हैं,,ताकि वे नीचे ना गिर जाएं,,,जब चलना सीखते हैं तो हर पल की चौकसी बनाएं रखते हैं,,,, कहीं टेबल का कोन ना लग जाए,,कहीं माथा ना ठुक जाए,,।
मुझे याद है मेरे घर के बिजली के कुछ स्विच बोर्ड नीचे की लगें थे,,और बड़े वाले बेटे ने घुटनों के बल चलना सीखा तो,,वह बार-बार उन स्विच के प्लग प्वांइट के छेदों में ऊँगली डालने को दौड़ता था,,। मुझे सारे बोर्ड ऊपर की तरफ़ करवाने पड़े। और भी बहुत कुछ रहता है,,, जिन पर भरपूर चौकसी रखनी पड़ती है अभिभावकों को,,जिससे शिशु का बचपन निश्चिंतता के परिवेश में पोषित और पल्लवित हो। ऐसा बहुत कुछ हम व्यस्क होने के बाद खो देते हैं।
इस दृश्य को देखकर आँखे भर आई,,,,,,,, लगा जैसे,,पृथ्वी के विलुप्त होते सुरक्षा आवरण ओज़ोन सी मेरा भी,,,या हम सभी जो व्यस्क हो चुके हैं,,जो आत्मनिर्भर हो चुके हैं,,,,उनकी वह 'अभिभावकीय ओज़ोन लेयर',,, विलुप्त होती जा रही है।
अब हम स्वयं अभिभावक बन चुके हैं,,,अब हमें अपने बच्चों को यह सुरक्षित एंव निश्चिंतता का वात्सल्यमयी आवरण प्रदान करना है,,,उन्हे उसी तरह जीवन पथ की ऊष्णता और आद्रता सहने के काबिल बनाना है जैसे हमारे अभिभावकों ने हमें बनाया।
माँ-बाबा तो सशरीर इस जगत में नही,,पर एक आभासी विश्वास मन में सशक्तता से आसीन है,,,वे जिस लोक में हैं,,,अपने आशीर्वाद से आज भी अपना वात्सल्यमयी घेरा बना कर हर बाधा, दुरूहता,चुनौतियों, कठिनाइयों से निपटने का संबल दे रहे हैं,,,और मैं इसी फोटो वाले बालक सी अपने अभिभावक की गोद में गुड़मुठियाए निरविकार निश्चिंतता से सो रही हू😊
लिली🌿
bahut khub ....mujhe ye afsana kafi pasand aaya....or sirf yhi nhi aapki har ek kavita achhi h...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका महोदय!
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