बुधवार, 26 सितंबर 2018

दीवारें

                    (चित्राभार इंटरनेट)

#दीवारें🌿

दीवारों का वजूद भी,
अजीब होता है
होना भी ज़रूरी
और
ना होना भी अजीज़
होता है,,

मौजूदगी इनकी
डराती भी है,,,
'धीरे बोलो',,,
"दीवारों के भी कान होते हैं",,,!!
तो वहीं,,,,
चार दीवारों और उनपर
टिकी छत कमाने के लिए,,
लोग,,खून पसीने की
फ़सल बोते हैं,,,

नफां भी कमाती हैं
नुकसान भी दिखाती हैं,,
दिली नफ़रतों की नींव पर
मज़बूती से खड़ी होती हैं,,,
अपने जिस्म पर प्यार की
बानगी भी लिए होती हैं,,,

ना जाने कितने रंगों में
रंगीं होती हैं,,
यूं तो महज़ ईंट-गारे
की बनी होती हैं,,

इंसानी आबरू को
पनाह भी यहीं मिलती है,,
,,,तो,,
इनकी आड़ में बेरहमीं से,
लुटती भी यहीं दिखती हैं,,,

कभी ये सीली,,
तो कभी,,
सूनी दिखती हैं
ढलती उम्र के बिस्तर पर
यादों के एलबम सी
दिखती हैं,,,
लाचार शरीर की गवाह
बनी,,
बड़ी बेचारगीं से तकती हैं,,

और भी बहुत कुछ है,,
मगर,,
इतना ही काफ़ी है,,,
अभी और पढ़ लूं मैं इनको,,
इनकें कोनों में छिपा,,
बहुत कुछ बाकी है,,,,।

लिली 😊

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