मंगलवार, 4 सितंबर 2018

चलो ना जीवन्त बीहड़ों की ओर

                     चित्राभार इन्टरनेट)

नरम एहसासों की सेज पर
दो ओस की चमकती बूंदों
   ,,से,,,
मैं और तुम,,💕
एक दूजे का अक्स बने
आस-पास से अन्जान,,,

चलो ना!!!
इन कंकरीटों के बेजान
शहर से दूर,,,
किसी जीवन्त से
बीहड़ों में,,,
जहाँ सूरज की रोशनी,,
भी पड़े हम पर
,,,तो,,,
हम झिलमिला उठें,,,
उसकी गुनगुनी गरमाहट,,
वहाँ की फैली हरितिमा,,
की सुगन्ध ऊष्मित कर
फैलाती हो,,,
हर तरफ़ बसी आद्रता,,
बस एक स्वप्निली
धुंध बिखराती हो,,

इन कंकरीटी शहरों की
ईंट पर गिरते ही,,
वजूद सूख जाता है,,,,
यहाँ की कृत्रिम दूब भी,,
नही सहेज पाती
मुलायम जज़्बातों की
ओस को,,
ज़्यादा  देर तक,,
चहल-कदमी करते
कदम, ठोंकरों से
झंकझोर देते हैं ,,
,,,,,और ,,,
हम झड़ कर हो जाते हैं,,
फ़ना एक दूजे से,,

चलो ना!!!

लिली🌷

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