रविवार, 16 सितंबर 2018

पिघलती बर्फ़ हिमालय की,,,,

           (चित्र साभार मेरे मित्र सौरभ पांडे की सौजन्य से)
              कसौनी की खूबसूरत वादियों से

  • फेसबुक पर सौरभ द्वारा अपलोड की गई ये खूबसूरत छवि,,देख कविता भी रुक ना पाई,,,😊 



गरम चाय के प्याले
से उठते धुंएँ से,
पिघल रही है बर्फ़
हिमालय की,,
ठिठुरता सा था
जो आसमान ठंड से,
लेकर नीलाभ
फैल गया था दूर तक,,
जो धुंध थी छाई
हरितिमा पर,सब झर
चुकी थी धरा पर,,,
सब साफ़ सा,
सब स्पष्ट सा निखरा हुआ,
खिला खिला उजियाला लिए,,
पोछ दिए हों लेंस कैमरे के,
',,,,,और,,,,,
निकलती हो तस्वीर,,
'हाई रेज़्यूलेशन' क्वालिटी लिए,,
रफ़्तार पकड़ती सोच,,
किसी व्यस्त शहर की
सड़कों सी,,
हर घूंट के साथ
लक्ष्य पकड़ते हौंसलें,
तैयार करते खुद को,
एक और दिन की शुरूवात
के लिए,,,
ये महज़ प्याला नही,
एक कप चाय का,,,,
ये है सूरज मेरा,,,
मेरी बालकनी की
रेलिंग पर टिका,,,,
लिली😊

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें