शनिवार, 1 सितंबर 2018

अधजला,,,

                     (चित्राभार इंटरनेट)


खुद को कुरेदना भी,
सुकून देता है,,,!!!
एक जलते अलाव जैसा!!!
सुलगते अंगार,
जो दबकर
खो देते हैं अपनी आंच,
ठीक से जल नही पाते
कुछ सूखी काठ और सूखे पत्ते,,,
अधजला नही छोड़ना कभी इन्हे,
जलते जख़्म ना जीने लायक छोड़ते हैं ,,
ना मरने लायक,,,
एक दाग़ छोड़ जातें हैं,,,
छोड़ जाते हैं, खुद की ख़ाक,,,
आँखों के सामने,,,
उड़ते हुए,,
इसलिए जब खुद को जलाना,,
तो कुरेद,कुरेद कर जलाना,,,
कुछ बचे ना शेष,,
भस्म का क्या है,,!!
हवा संग उड़ जाएगी,,,
या मिल जाएगी मिट्टी में,,
पर,,,,
अधजला ,,
ना मिट्टी का हो सके
ना हवा का,,,
लिली😊

1 टिप्पणी:

  1. वाह ! जीवन युग्म का सूक्ष्म विश्लेषण। कविता सीधे में उतर जाती है भावों की कई तरंगे निर्मित करते हुए स्थिर जल में कंकड़ के मानिंद। काव्य में भावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया गया है बेहद सरल शब्दों में।

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