(चित्राभार इन्टरनेट )
हसरतों की लहरें थमीं थमीं सी हैं,,,। एक चट्टान सी है खड़ी साहिल पर,,,,,बड़ी दूर से अपनी ही धुन में मदमस्त लहरें उन्मादीं हो आती हैं,,,,चट्टान से टकरा कर सारा उन्माद छटक पड़ता है,,,,। उन्मादी वेग का चट्टान से टकराव होता है तो एक समूची सी दिखने वाली लहर असंख्य छोटी-छोटी जल बिन्दुओं में बट कर बड़ी दूर तक,,, बड़ी ऊँचाईं तक फैल जाती है,,,,,,,नीचे गिरती है,,,और वापस लौट जाती है,,,।
कल्पनाओं के पंछीं आवारा मन के असीम आकाश में उड़ते उड़ते जैसे थक कर बिजली के तारों ,,और पेड़ों की शाखों पर बैठ कर सुस्ताने लगे हैं। दम फूल रहा है उनका भी,,,बस उड़ान है आकाश में डैने दुखने लगे अब ,,,,, थकान को आराम एक आधार पर ही मिलता है,,,,,यही सोच रहे हैं,,,पेड़ों की शाखों और बिजली के तारों पर बैठकर,,,,,,,,,,!
जीवन से मृत्यु के इस लम्बे सफर में कई और छोटे- बड़े 'सफर' अंतरनिहित होते हैं,,,,,। जैसे कि,,,,, घर के किसी कमरे से,,रसोई तक जाना,,,, घर से बाज़ार तक जाना फिर वापस घर को आना,,,एक शहर से दूसरे शहर जाना,,,,ऐसे ही बहुत से 'सफर',,,,,रोज़ाना,,हर पल,, हम तय करते हैं,,,।
सफर का एक लक्ष्य होता है,,,एक वजह होती है,,एक परिणाम भी होता है,,,जो सफर की सफलता के 'निर्धारक' होते हैं,,,,!
कुछ सफर ऐसे भी होते हैं,,,,जिनका कोई लक्ष्य नही होता,,,,कोई निर्धारित वजह नही होती,,बस रेल की पटरियों से,,,एक के समानान्तर दूसरी चलती रहती है।
पर बेवजह शायद कुछ भी नही होता,,रेल की पटरियां ही 'रेल' को चलने का आधार प्रदान करती हैं।
पटरियां गड़बड़ाईं और रेल दुर्घटना स्थान ले जाती है।
ये तर्क भी बड़ी कमाल की चीज़ है,,,,भावनाओं की उन्मादी लहरों को किनारों पर खड़ी ठोस चट्टान से अटका देती हैं।
जब कल्पनाओं के पंक्षीं हांफ जाएं मन मनमौजी आसमान की सैर करते करते,,,,तब उन्हे तर्क के तारों पर बिठा देना चाहिए,,,,,। सामन्जस्य बना रहता है,,,,।
एक मुख्य सफर में अंतरनिहित कई छोटे-छोटे 'महत्वपूर्ण सफरों' के साथ-साथ,,, समानान्तरी बेवजह लगने वाले सफर को भी चलते रहने देना चाहिए,,,,, लेकिन ये सफर जब हावी होने लगें,,,,तब तर्कों की रेलगाड़ी चला देनी चाहिए,,,,,। पुनः वही,,,,,,,,,,,, सामन्जस्य बना रहता है!
हसरतों की लहरें थमीं थमीं सी हैं,,,। एक चट्टान सी है खड़ी साहिल पर,,,,,बड़ी दूर से अपनी ही धुन में मदमस्त लहरें उन्मादीं हो आती हैं,,,,चट्टान से टकरा कर सारा उन्माद छटक पड़ता है,,,,। उन्मादी वेग का चट्टान से टकराव होता है तो एक समूची सी दिखने वाली लहर असंख्य छोटी-छोटी जल बिन्दुओं में बट कर बड़ी दूर तक,,, बड़ी ऊँचाईं तक फैल जाती है,,,,,,,नीचे गिरती है,,,और वापस लौट जाती है,,,।
कल्पनाओं के पंछीं आवारा मन के असीम आकाश में उड़ते उड़ते जैसे थक कर बिजली के तारों ,,और पेड़ों की शाखों पर बैठ कर सुस्ताने लगे हैं। दम फूल रहा है उनका भी,,,बस उड़ान है आकाश में डैने दुखने लगे अब ,,,,, थकान को आराम एक आधार पर ही मिलता है,,,,,यही सोच रहे हैं,,,पेड़ों की शाखों और बिजली के तारों पर बैठकर,,,,,,,,,,!
जीवन से मृत्यु के इस लम्बे सफर में कई और छोटे- बड़े 'सफर' अंतरनिहित होते हैं,,,,,। जैसे कि,,,,, घर के किसी कमरे से,,रसोई तक जाना,,,, घर से बाज़ार तक जाना फिर वापस घर को आना,,,एक शहर से दूसरे शहर जाना,,,,ऐसे ही बहुत से 'सफर',,,,,रोज़ाना,,हर पल,, हम तय करते हैं,,,।
सफर का एक लक्ष्य होता है,,,एक वजह होती है,,एक परिणाम भी होता है,,,जो सफर की सफलता के 'निर्धारक' होते हैं,,,,!
कुछ सफर ऐसे भी होते हैं,,,,जिनका कोई लक्ष्य नही होता,,,,कोई निर्धारित वजह नही होती,,बस रेल की पटरियों से,,,एक के समानान्तर दूसरी चलती रहती है।
पर बेवजह शायद कुछ भी नही होता,,रेल की पटरियां ही 'रेल' को चलने का आधार प्रदान करती हैं।
पटरियां गड़बड़ाईं और रेल दुर्घटना स्थान ले जाती है।
ये तर्क भी बड़ी कमाल की चीज़ है,,,,भावनाओं की उन्मादी लहरों को किनारों पर खड़ी ठोस चट्टान से अटका देती हैं।
जब कल्पनाओं के पंक्षीं हांफ जाएं मन मनमौजी आसमान की सैर करते करते,,,,तब उन्हे तर्क के तारों पर बिठा देना चाहिए,,,,,। सामन्जस्य बना रहता है,,,,।
एक मुख्य सफर में अंतरनिहित कई छोटे-छोटे 'महत्वपूर्ण सफरों' के साथ-साथ,,, समानान्तरी बेवजह लगने वाले सफर को भी चलते रहने देना चाहिए,,,,, लेकिन ये सफर जब हावी होने लगें,,,,तब तर्कों की रेलगाड़ी चला देनी चाहिए,,,,,। पुनः वही,,,,,,,,,,,, सामन्जस्य बना रहता है!
जीवन में सांमंजस्य बेहद आवश्यक है। जीवन में कल्पनाओं की उड़ान भी जरूरी है। समानांतर रेल की पटरियां अनंत यात्रा का द्योतक भी हैं और लक्ष्य की ओर ले जाने का एक साधन भी। चट्टान से टकरा कर लहरों के बूंदों में बिखर जाना जीवन की स्थूलता से सूक्ष्मता का प्रतीक है। यह भी दर्शाता है कि बिना एक सक्षम टकराहट के सूक्ष्मता को बूझ पाना कठिन है। चट्टान एक सक्षम चट्टान का मिल पाना ही कठिन है। शायद नदियों की लहरें किनारे की ओर एक सक्षम चट्टान की तलाश में ही दौड़ती हैं। अपने स्थूल रूप को सूक्ष्म रूप में ढाल लेने के लिए।
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