शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

तुम्हारा इन्तेज़ार लिखना है,,,,,

                     (चित्राभार इन्टरनेट)

🌞तुम्हारा इन्तेज़ार लिखना है🌞
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एक इन्तेज़ार हो तुम,,,और मैं अपने इन्तेज़ार को लिखकर गुज़ार रही हूँ। बेचैन सुनी दोपहर ,,जो कभी कभी बहुत ख़ामोश होती हैं। कोई आव़ाज नही सुनाई देती ,,सिवाय छत के पंखे के चलने,,,या कुछ अंतराल पर नीचे सड़क पर गुज़रते किसी स्कूटर या कार की आवाज़ के।
      चिलचिलाती सी धूप से झुलसते पेड़,,, जिन्हे शाम की शीतलता का इन्तेज़ार होता है। उन झुलसे पेड़ों को शाम की शीतलता नसीब होती है,,,,,पर मेरी इन्तेज़ारी दोपहर को शाम की शीतलता नही नसीब,,,,,,,,,,,,।
     कभी-कभी समय बेहिसाब होता है,,काटे नही कटता,,,,दिल बहलाने के समान भी बहुत ,,,पर दिल है कि बहलने को राज़ी नही होता,,,,,,!
      फिर मुझे लिखना पड़ता तुझे,,,,क्या करूँ तू नही तो तेरा जिक्र ही सही,,,,कुछ तो है,,जो तुझे मेरे करीब होने का अहसास कराता है।
     कभी कभी लगता है,,,तुझे पा लेने के ख्याल से बेहतर है,,,तुझे सोचना,,तुझे लिखना,,,!! इसमें तुझे खोने का डर नही होता,,तेरे आने,,,और आकर फिर चले जाने का ख़ौफ नही होता,,,,।
       ये जो तुम एक मेघ के टुकड़े से आकर बेचैन चिलचिलाते सूरज को ढक ,,,,अपने आने का एहसास दिलाते हो,,, इससे मेरा मन नही भरता। बल्कि और तड़प उठता है।
     तुम्हे जाने की जल्दी होती है,,,,और मुझे  तुम्हे रोकर रखने की पुरजोर चाहत,,,, । बहुत सोचकर एक राह निकाली है,,, अब आने के लिए नही कहना है,,,,'लेकिन तुम आओगे' इस आस को जिलाए रखना है,,,,,,।
चलो अब आने कि ज़रूरत नही तुम्हे,,,,, तुम बस 'एक वादा' रख दो मेरे आगे,,,,,,मुझे अब इन्तेज़ार रास आने लगा है।

लिली 😊

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