शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

तीनों बन्दर 'फ़ीलिंग फ़्री'

                        (चित्राभार इन्टरनेट)


बापू जी के बंदर तीन
दिखे एकदिन बड़े गम़गीन
मैने पूछा-"बंदर भाई!
चेहरे पर क्यों गम़गीनी छाई?"

बोले बन्दर नम्बर वन,
बड़ा दुखी है मेरा मन।
बंद आँखें पर सुनूँ बुराई,
मोहे भाए ना ये खटाई।

बोले बन्दर नम्बर टू
आँखें कैसे बंद कर लूँ?
हाथ कान पे रखे हूँ,
बुरा आँख से देखे हूँ?

बोले बन्दर नम्बर तीन,
कैसे बजाऊँ अपनी बीन?
बंद मुँह कर रहा ना जाय,
देखूँ सुनूँ तो गुस्सा आयें।

बात तो बोले तीनों ठीक ,
पर ठहरे एक सीख प्रतीक !
मिल जाए इक अचूक निदान,
समस्या विकट तारो भगवान!

तकनीकि का भला हो भाई,
बना दिया जो ये   मो-बा-इल।
सब कुछ भूलकर इसमे गुम,
लेकर घूमें अब हाथ में दुम ।

तभी दिखे एक मस्त कलन्दर,
लीन मग्न मोबाइल के अन्दर।
सीख प्रतीक के उत्तम 'सिम्बल',
आए चौथे 'टेक्नोसेवी बन्दर'।

इन्हें बुरा ना दिखता कुछ
सुनते मन की स्क्रीन पे झुक
आसपास सब भूल के घुप
बोलें मुश्किल से दो टुक।

हो गए मुक्त    बन्दर तीन ,
जश्न मनाएँ तक-धिन-धिन!!
सेल्फी खींची वायरल की,
तीनों बन्दर फ़ीलिंग फ्री ।

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