सोमवार, 4 सितंबर 2017

एक दबी सी आस,,,,,,झूठ ही सही

                       (चित्राभार इन्टरनेट)

एक आस है,झूठ ही सही,
दिले खास है,झूठ ही सही।
सफर का हमसफर बना लो,
दबी प्यास है,झूठ ही सही।

तुम मेरे साथ हो,झूठ ही सही,
हाथ में हाथ हो,झूठ ही सही।
कोई शाम मेरे साथ गुज़र लो,
बहकते जज़्बात हो,झूठ ही सही।

भोर बाहों में कसी,झूठ ही सही,
खिले लबों पे हंसी,झूठ ही सही।
सिलवटों को फिर से बिगाड़ लो,
सांसे,सांसों में,फंसी,झूठ ही सही।

घर हो एक हमारा,झूठ ही सही,
प्यार से भरा चौबारा,झूठ ही सही।
मै चौखट पर बाट निहारूँ सांझ को,
सिंदूर से मांग हो भरी,झूठ ही सही।

एक आस है,झूठ ही सही,
दिले खास है,झूठ ही सही,,,,,,,,,,

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