मंगलवार, 5 सितंबर 2017

प्रिये लजाई हैं,,,

                            (चित्राभार इन्टरनेट)

लाज से अभिव्यक्तियां सकुचाई हैं।
प्रीत की ओढ़नी,अधरों तले दबाई है।।

नयनों की शरारत,जुगनू सी झिलमिलाई है ।
ढांप पलक झट से,चहक चमक छुपाई है।।

सुवासित खुले केश घनघटा घुमड़ाई है।
बांधें जो खीज के,वेणी नागिन सी लहराई है।।

अस्त-व्यस्त हुए वसन सुध-बुध गवाई है।
चुनर ढांक रही यौवन,झांक रही तरूणाई है।।

पग चले हो मगन,डगर ही डगमगाई है।।
रीझ रही प्रियतम पर,आज प्रिये मदमाई हैं।।

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