(चित्राभार इन्टरनेट)
लाज से अभिव्यक्तियां सकुचाई हैं।
प्रीत की ओढ़नी,अधरों तले दबाई है।।
नयनों की शरारत,जुगनू सी झिलमिलाई है ।
ढांप पलक झट से,चहक चमक छुपाई है।।
सुवासित खुले केश घनघटा घुमड़ाई है।
बांधें जो खीज के,वेणी नागिन सी लहराई है।।
अस्त-व्यस्त हुए वसन सुध-बुध गवाई है।
चुनर ढांक रही यौवन,झांक रही तरूणाई है।।
पग चले हो मगन,डगर ही डगमगाई है।।
रीझ रही प्रियतम पर,आज प्रिये मदमाई हैं।।
लाज से अभिव्यक्तियां सकुचाई हैं।
प्रीत की ओढ़नी,अधरों तले दबाई है।।
नयनों की शरारत,जुगनू सी झिलमिलाई है ।
ढांप पलक झट से,चहक चमक छुपाई है।।
सुवासित खुले केश घनघटा घुमड़ाई है।
बांधें जो खीज के,वेणी नागिन सी लहराई है।।
अस्त-व्यस्त हुए वसन सुध-बुध गवाई है।
चुनर ढांक रही यौवन,झांक रही तरूणाई है।।
पग चले हो मगन,डगर ही डगमगाई है।।
रीझ रही प्रियतम पर,आज प्रिये मदमाई हैं।।
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