(चित्राभार इन्टरनेट)
मन चंगा तो ,
कठौती में गंगा।
पाप धो धोकर
हो गई मैली गंगा।
वैदिक संस्कृति ,
की,कल कल गंगा।
सिकुड़ रही अब,
विस्तृत गंगा ।
पतित पावनी,
हर हर गंगा।
निज अस्तित्व ,
को गुहारे गंगा।
शब्दों मे ही पावे
भक्ति माँ गंगा
कर्मों से करते
हम,मैली गंगा।
माँ भारती का
आंचल है गंगा
स्वच्छ निर्मल
रखनी है गंगा।।
मन चंगा तो ,
कठौती में गंगा।
पाप धो धोकर
हो गई मैली गंगा।
वैदिक संस्कृति ,
की,कल कल गंगा।
सिकुड़ रही अब,
विस्तृत गंगा ।
पतित पावनी,
हर हर गंगा।
निज अस्तित्व ,
को गुहारे गंगा।
शब्दों मे ही पावे
भक्ति माँ गंगा
कर्मों से करते
हम,मैली गंगा।
माँ भारती का
आंचल है गंगा
स्वच्छ निर्मल
रखनी है गंगा।।
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