सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

अधरन से मुरली ना लिपटाओ घनश्याम

                         (चित्राभार इन्टरनेट)
         

🍃🌺 अधरों पर बड़े प्रेम से सजाकर अपनी बांसुरी को जब कान्हा मगन हो तान छेड़ते रहे होंगें,,,, कभी ना कभी तो राधा के मन में ऐसे भाव अवश्य उपजे होंगें 😊🍃🌺


अधरन से नहि लिपटाओ,
मुरली  मोरे   घनश्याम।
सूखी पाती ज्यो जरती,
मोरि सूरत की मुस्कान ।

पलक मुंदि के तुम  छेड़ों,
जब मनोहारनि   सुरतान।
मुँह बिरावत  सौतन सी,
 यह मुरली बनी शैतान।

अधरन से नहि लिपटाओ
मुरली मोरे घनश्याम,,,

भरि के नेह ऊँगलिन मे,
छुवो मुइ काठी निष्प्रान।
जरि-जरि जाव देह मोरिे,
 ज्यों जेठी के अपराहन। 

अधरन से नहि लिपटाओ
 मुरली मोरे घनश्याम,,,

हरखि निरखि के तकत रही,
      मोहे  कनखियन     के तान।     
      न सुहाए लगन       तुम्हारी,   
औ इहि बँसुरियाँ के  गान। 

अधरन से नहि लिपटाओ
मुरली मोरे   घनश्याम,,,

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके द्वारा इससे पहले लिखी कविता को पढ़कर मैंने कहा था कि हिंदी साहित्य के छायावादी युग की कविता है और उसे अपने टाईमलाईन पर शेयर किया। यह कविता आपके लेखन का अगला पड़ाव है। हिंदी साहित्य का भक्तिकाल का अंदाज़, शैली, भाषा और भाव पुनः आपके लेखन की सशक्तता को दर्शा रहे। एक सुंदर रचना।

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  2. अद्धभुत सम्मिश्रण ये यकायक ऐसा लगा कि हम पन्त जी के युग मे आ गए परन्तु बढ़ते महसूस हुआ इसमें प्राचीनतम काल के भक्ति कवि सा भान हुआ।जितनी तारीफ हो कम है।

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