गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

पर्यावरण सुरक्षा सर्वोपरि


           
    (2016 की दीपावली के बाद दिल्ली का आसमान, चित्राभार इन्टरनेट)


 सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार दिल्ली में पटाखों पर बैन ने केवल दिल्ली ही नही पूरे भारतवर्ष में हाहाकार मचा दिया है। लोग क्षुब्द हैं, रोष से भरे पड़े हैं, के बिना पटाखे कैसी दिवाली,,???
     व्हट्सऐप पर इस आदेश के विरोध में तमाम कटाक्ष कसे जा रहे हैं ,,हिन्दू धर्म और संस्कृति पर कुठाराघात सा बताया जा रहा है।तमाम तर्कपूर्ण अकाट्य तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
     नासा के परमाणु परिक्षण से लेकर 365 दिन यातायात के साधनों द्वारा फैलने वाले प्रदूषणों पर भी विचार करने की सलाह सुझाई जा रही।
       मै दिल्ली एन सी आर मे 16 साल से रहती हूँ और अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभव या आंखों देखी आपके सामने रखना चाहती हूँ।
    चकरी और फुलझड़ी से मुझे भी कोई आपत्ति नही मै भी दो पैकेट फुलझड़ी अपने छोटे बेटे को लाकर देती हूँ। परन्तु 300,500 ,1000 लड़ियों वाली देर तक धमाकेदार आवाज़ और धुआं करने वाले चटाई बम चलाना किस बात का प्रदर्शन करना होता है,,? अथवा किस प्रकार का आनंद प्राप्त होता है ? यह समझ नही आया मुझे।
        यदि आपके घर में कोई बड़े बुज़ुर्ग हैं और वह अस्वस्थ हैं,,कभी सोचा है आपने कि उनके लिए दीपावली का दिन कितना कष्ट प्रद होता है? आतिशबाज़ी शुरू होने के घंटेभर बाद, लाख खिड़की दरवाज़े आप बंद कर लिजिए आपके घर दमघोटूँ धुओं से भर चुके होते हैं।
         दीवाली के पश्चात कितने दिनों तक दिल्ली के आसमान पर प्रदूषण की धुंध छाई रहती है,,जो कि नानाप्रकार की श्वास सम्बन्धी बिमारियों को जन्म देती है।
       हमारे नन्हे-मुन्ने बच्चे जिनके 'बचपन' पटाखे बैन होने की वजह से  छिनते हुए देखे जाने की दुहाई दी जा रही है,,,वही बच्चे इन पटाखों से फैले प्रदूषण के सबसे अधिक शिकार होते हैं क्योंकि उनमे वयस्कों सी प्रतिरोधक क्षमता नही होती। वातावरण में फैले प्रदूषण से एलर्जी ,सर्दी,खांसी, बुखार भोगते हैं। दीपावली की मिठाइयों के बाद कठोर एंटीबायॅटिक सेवन करने पर मजबूर हैं। सोच कर देखिए उस समय जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं को हम क्या परिवेश दे रहे हैं?
      कुछ तर्क ऐसे भी उठे,,, बारूद की गंध से कीट पतंगें मरते हैं,,। हर त्योहार के मनाए जाने के पीछे धार्मिक सदभावना के पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य भी होता है। दीपावली में दीप जलाने का एक प्रमुख कारण यह भी है। परन्तु आजकल बिजली की झालरों से सजाए जाने की प्रथा के कारण कीट पंतगें खत्म तो नही होते बल्कि उनकी संख्या में बढोतरी हो रही है। पटाखे चलाने के बजाय यदि झालरों कम और अधिक दीप जलाएं तो कीट-पतंगें भी मरेगें और गरीब कुम्हारों की भी आमदनी होगी। मोमबत्तियों जैसे लघु उद्योगों को भी प्रश्रय मिलेगा।
       लोगो को पटाखे वालों के जमा स्टाॅकों के बेकार जाने की चिन्ता खाए जा रही है,,,,पर यदि कोर्ट के आर्डर ना आते तो क्या वे लोग केवल चकरी और फुलझड़ियां चलाकर संतुष्ट हो जाते,,,जिनके लिए महगी अतिशबाजियों का प्रदर्शन करना अपने वैभव और प्रतिष्ठा का प्रतीक लगता है?
        नियम कानूनों का पालन यदि हर नागरिक अपना कर्तव्य समझ कर करता तो शायद ऐसे जनमानस को आन्दोलित कर देने वाले अप्रत्याशित हुक्मनामे जारी करने की नौबत ना आती।
         विदेशों में नववर्ष पर पटाखे अवश्य चलाए जाते हैं पर वह हमारे देश में बनने वाले अत्यधिक धुएंदार और हृदय कंपा देने वाली आवाज़ों वाले नही होते। विदेशों के नागरिकों को अपने घर के साथ-साथ अपने आस-पड़ोस और पर्यावरण का भी ख्याल होता है।
         सरकारियों नीतियों मे ढीलापन, बाजारीकरण,और उद्योगपतियों की स्वार्थपरता से आंखे नही मुंदी जा सकती । परन्तु दोस्तों अगर वह हमारे हित और संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तो हम तो देख सकते हैं। दिल्ली में रहने वाले लोग दीपावली के बाद होने वाले स्वास्थ को हानि पहुँचाने वाले वातावरण को देखते हैं दुष्परिणाम भी भुगतते हैं। आंखों मे जलन, स्वास सम्बन्धी कठिनाइयां,खांसी, बुखार ,सीने की जलन,दम अटकना जैसी कठिनाइयां हमे ही सहनी पड़ती हैं।  जो लोग अन्य प्रांत से हैं,,,और बिना देखे अपनी जगहों पर बेकार की जिरहबाज़ी कर रहे हैं,,उनके लिए यह एक पूर्व चेतावनी है,,,पर्यावरण केवल दिल्ली का ही नही प्रभावित हो रहा आपका शहर भी आज नही तो कल चपेट में आएगा।
           अतः कोर्ट के फैसले की निन्दा नही स्वागत कीजिए ,वह चाहे 10 दिन पहले आया हो,,या एक महीने पहले,,,,आपके और मेरे स्वस्थ हित के लिए शुभ ही है। नासा परमाणु परिक्षण और 365 दिन होने वाले कारकों को रोक पाना हमारी पहुँच से दूर हो शायद पर पटाखों को ना चला कर हम एक छोटा सा योगदान अवश्य दे सकते हैं।
     



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