मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017

मुझे पाओगे,,,,

(चित्राभार इन्टरनेट)

बालों की सफेदी
 से उजली चांदनी 
रातों में,जब अपनी 
स्टडी टेबल पर बैठ, 
अपनी ही लिखी
रचनाओं के पन्ने 
उलटाओगे,देखना कंधे 
पर अचानक मेरे हाथों की 
गरमाहट पाओगे,,

भौंवें उठाकर 
नाक पर अटकी
ऐनक से नज़रे घुमा 
कर देखोगे,,
मेरे मुस्कुराते चेहरे 
पर ठहर जाओगे
तुम्हारे शब्द फिर 
एकबार मुझे
तुम तक ले जाएगें,
गुज़रे ज़माने के अक्स 
मेरी आंखों में छलक जाएगें,,,

मेरी तलाश से
लेकर मुझे पाने का,
मुझे पाकर मुझे जीने
तक का हर लम्हा 
गुनगुनाएगा
मेरी सांसों में तुम्हारे
प्यार का समन्दर
तब भी वैसे ही 
लहराएगा,,,,

एक आलिंगन की 
चाह हर कविता 
में बाजुएं फैलाएगीं
और मैं कांधों से हट
तुम्हारी बाहों में
सिमट जाऊँगीं,,,।

मौन का वो संवाद
ना जाने कब तक
हमें उलझाएगा
और पता नही कब
कितना वक्त
 गुज़र जाएगा,,,
मै तुमसे अपनी हर 
प्रिय रचना को
पढ़वाऊँगीं,
तुम पढ़ोगे और मैं
वैसे ही शरमाऊँगीं,,

सुनो ! तुम अपनी
रचनाओं का संकलन
ज़रूर छपवाना 
हम साथ-साथ ना रहे
तो क्या? तुम्हारे 
काव्य संकलन में
हमारा साथ एक 
पड़ाव पाएगा,,
जब तुम्हे मेरी याद
आएगी मेरा हाथ
हमेशा तुम्हारे 
कांधों को सहलाएगा,,,,,,,

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