शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

एक शाम प्रतीक्षारत,,,,

                           (चित्राभार इन्टरनेट)
दिन बीत गया बेचैन खामोशियों के साथ,,,।
शाम की हवा भी बड़ी उदास,,,, एक झलक तो मिले नज़रों में छुपी एक यही आस,,,,,,,,। पर तुम तो जैसे अमावस के चांद से छुप गए हो,,,,। एक हल्की सी आवाज़ भी शोर लगती है। बस तुम्हारे तस्व्वुर में तन्हाइयां बजती हैं,,।
      चुपचाप सा चीत्कार सुनाई देता हैं,,,,पर अधरों पर गहन मौन का पहरा है। उदास हवाओं ने तुम्हारी यादों के पुष्प पग पग पर बिखराए हैं,,,,,। मैने चुनकर इन पुष्पों का एक गजरा बनाया है,,,अपनी वेणी में गुथ तुम्हारे सानिध्य को पाया है।
        तुम्हारी बातें सुनकर ही मेरी चंचलता बन तितली मंडराती है,,बिन तुम्हरी बतियां सूनी रात के झींगूरों सी झीनझीनाती हैं। सब कुछ बेरंग,,,स्याह रात सा काला है,,आ जाओ बस तुम्हारे आने में ही चरागों सा उजाला है।
          दो शब्द तुम्हारे , मेरे एकान्त का तम हर लेगें,,,,वरना अंतर का वीराना हम आमावस की रात से भर लेगें। कितना निष्ठुर हैं प्रियतम तुम्हारा व्यस्तता भरा दिन!! एक पल भी लेने नही देता मेरे नाम का पल-छिन,,,,!!
           डूबते सूरज के संग मेरा मन भी डूबता जाए ,,,भेज दो कोई संदेस के अब रहा ना जाए। मन करता है हर दीप बुझा दूँ,,,,,चुपचाप अपने अस्तित्व को अंधकार में गुमा दूँ। कुछ पल की प्रीत भरी बतिया ही तो मांगू,,,, इन्ही एहसासों की महक लिए सोऊँ और जागूँ,,,।
      एक शाम प्रतीक्षारत,,,,,,,

1 टिप्पणी:

  1. लेखन आसान काम नहीं होता। किसी एक भाव को पकड़ कर मन उसमें डूबता है। मन जितनी गहराई में डूब पाता है उतने ही गहरे शब्दों में अभिव्यक्ति होती है। लिली जी ने मीरा और कृष्ण के प्रेम की पीड़ा, समर्पण, अनुराग, चीत्कार, पुकार को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। यदि कृष्ण इस अभिव्यक्ति को पढ़ लें तो तड़प उठेंगे मीरा की ओर दौड़ने को पर क्या वह दौड़ पाएंगे। जीवन में भी ऐसे ही होता है। एक दिल दूसरे को पुकारता है और दायित्व दौड़ने नहीं देते। एक सामयिक और सुंदर रचना।

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