मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

तकिए,,

                        (चित्राभार इन्टरनेट)
 
दिल के भेदों को पहले
शब्दों मे ठूँसती है
फिर शब्दों को रचनाओं
के लिहाफ मे ठूँसती है
हाशिए,विराम के चिन्ह
लगा किनारों को मजबूती
से सी देती है,,,,,,,,,,,,,,,,
हाय री किस्मत कुछ दर्द
छुपाने को तू कितने तकिए
सी ती है,,,,,,,,????

इन तकियों को अपने
सिरहाने लगाती है
अकेली रातों में अश्कों
से भिगोती है,,,,
गीले तकियों पर ही
रात सुबककर सोती है,,
कोई सुन ले सुबकियां
इसलिए मुँह दबा के
रोती है,,,,,,,।

दर्द से दुखते बदन को
इन मसनदी सहारे पर
टिकाती है,,,,,,,,,
दोनो बाहों में भींच
दिल के दर्द को दबाती है
बैचैनी को मुस्कान से छुपाती है
ऐ ज़िन्दगी !तू दर्द के साथ
उन्हे दबाने के नुस्खे
भी बताती है,,,,,,,।
~लिली 😊

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