गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

मन आंगन में मने दीवाली,,,,

                     (चित्राभार इन्टरनेट)
 
तेरे मेरे इस
बंधन की
एक बंदनवार
बनाई है,,,,
अंतर मन के
द्वारे पर इसकी
लड़ी सजाई है।

अपनी प्रीत के
हर रंग से मैने
अनुपम रंगोली
बनाई है,,,,
निरख चटख रंगों
की छटा हर्षित
मन अरूणाई है।

नयनों के दीप
जला कर मैने
दीप कतार
लगाई है,,,,
तेरे नयनों की
प्रज्जवलित बाती
हर दीप शिखा
लरजाई है।

हरित वसन पर
जड़ित बूटियां
स्वर्णिम आभा
बिखराई है,,,
धारण कर मैं
लगूँ सुहागन
अनुभूति बहुत
सुखदायी है।

मन आंगन में
मने दीवाली
पावन पर्व बेला
मधुमायी है,,,
साथ चलों तुम
पग पग पर
अभिलाषा ऐसी
जायी है,,,,।

1 टिप्पणी:

  1. दीप और प्रीत का एक सुगम, लयबद्ध, समर्पण लिए रचना के प्रत्येक शब्द दिए की लौ की तरह आलोकित है।
    शब्द-शब्द बन गया दिया
    भाव-भाव ढल गया जिया
    कविता में सज गयी दीवाली
    हर्षित हो मुस्कायें पिया।

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