शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

खामोशियों में खुसफुसाहट सुनती रही

                   (चित्राभार इन्टरनेट)

खुद ही मना कर
उसके आने की राह
तकती रही
लम्बी खामोशियों
में उसकी खुसफुसाहट
सुनती रही।

बंद पलकों से
अश्कों की धार
टपकती रही
मै अपनी हथेलियों
में उसकी लकीरें
तकती रही।

गहरी उदासियों में
उसकी खनक
बजती रही
मेरी पेशानियों
पर उसकी तस्वीर
उभरती रही।

पहचानी गलियों में
उसकी धूल सी
उड़ती रही
हर आहट पर
नज़र खिड़कियां
झांकती रही

उसके इश्क की
गलियां गुलाबों से
महकती रही
दूरियां बीच की
काटों सी
चुभती रही।









1 टिप्पणी:

  1. ज़िन्दगी से ज़िन्दगी की ठनती रही
    उम्मीदों की बदलियां यूं छंटती रही
    समय के कदमों की दूरियां यूं लगे
    हसरतों की हद में हुमक कटती रही।

    कुछ ऐसे ही एहसास आपकी कविता को पढ़कर मेरे मन में उठे। यदि मेरे भाव आपकी कविता के भाव से मेल खाते हों तो कहना न होगा कि कितनी स्पष्ट और सुंदर कविता की रचना हुई है।

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