रविवार, 22 अक्तूबर 2017

कोना भी जगमगाया है,,,,,

             (" किसी कोने को भर दिया उजाले से
              एक बाती,थोड़ा सा तेल,एक माटी के दियाले से")

     🌺🍃इस सुन्दर चित्र के लिए मेरी मित्र 'सोनू' को हृदयातल से आभार,, चित्र देखकर ही मन में एक रचना जल उठी🌺🍃

वो रात अंधेरी थी,,,पर बहुत उतावली थी। घर के उस कोनें की,,धड़कने बेचैन थीं। छत की खुली एक फांक से आसमान भी कुछ खोजती निगाहों से ताक रहा था।
         बेसब्री से शाम को विदा कर 'कोना' फिर से बैठ गया दिल को दबोचे,,के शायद धड़कनों को थोड़ा सुकून मिले,,,! तभी पूजा घर से आने वाली धूप, कपूर की भक्तिपूर्ण सुगन्ध ने किसी के आने का शंखनाद कर दिया था।
       एक सुर में गूंजते आरती के स्वर, शंख,घंटी की आवाज़,,अब उस कोने को उतावला बना रही थीं। सब स्वर धीरे धीरे वातावरण में धूप की गंध से विलीन हो गए।
      तभी गृहलक्ष्मी एक थाल में कई प्रज्जवलित दीपों को सजाए ,,आभामंडित मुख मंडल लिए दीपकतार सजाने लगी।
      प्रतीक्षारत् उस कोने पर रूकी और दो जलते दीपों को बड़े प्रेम के साथ वहाँ सजा दिया। दीपों के प्रकाश से 'कोना' असीम आनंद के प्रकाश से जगमगा उठा।
       वर्ष भर की लम्बी प्रतीक्षा के बाद आज वह 'कोना' भी झिलमिलाया है,,,मिलन के प्रकाश ने अमावस की रात को चांदनी रात सा सजाया है। दीपों की शिखाएं हल्के हवा के झोंकों से थर्राती थीं,,,कभी एक विपरीत दिशा में मुड़ती,,,तो  कभी आपस में चिपक जाती थीं। रह रह कर उजाला आस-पास को सहलाता था,, उस कोने के हृदय को एक गर्म एहसास से छू जाता था।
      आसमान भी उस ऊर्जा के प्रकाश को पेड़ों की आड़ से ताकता है,,,,जैसे हल्की सरदी से ठंडे पड़े हाथों को तापता है।
         ना जाने कितने ऐसे अन्दर और बाहर के कोने एक दिये के प्रकाश से चमके होंगें,,,,,तम के हरण और अंतस के उजास की दीपावली में चहके होंगें।

1 टिप्पणी:

  1. पढ़ते समय लगा कि मैं लिली जी की पोस्ट नहीं पढ़ रहा बल्कि दीपावली को लक्ष्मी पूजन कर रहा है। कलम में भी कितनी शक्ति होती है अनुभूति में डुबो देती है।

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