( तमाम विषमताओं को समेटे मशीनीयंत्रों सी उपमाओं और बिम्बों से सजी 'कविता' आज भी भावाभिव्यक्ति का सुकोमल साधन,,, चित्र मेरे द्वारा 😊)
जो कविताओं
को विधाओं के
बंधनों से मुक्त
कर दिया,,,,,
ये जीवन की
विषमताएं,सड़कों
सी उबड़-खाबड़
हो चली हैं,,,
कहीं गड्ढे तो
कहीं असमान उभार
मरम्मतें भी
पैबंदों सी
हो चली है,,,
कैसे कोई इन
खबड़ीले उछलते
रास्तों पर अपने
भावों की स्कूटर
चलाए?????
चलो अच्छा हुआ
जो कविताओं को
विधाओं के बंधनों
से मुक्त कर दिया,,,,
सुकोमल पुष्पों
की उपमाओं
चांद,तारों के
आंचल में अब
नही लहराते बिम्ब
मशीनी यंत्रों सी
शब्दावलियों का
है प्राचुर्य,,,,,
कैसे इस शुष्क
परिवेश को रसायुक्त
गीतों का मधुपान
कराया जाए,???
चलो अच्छा हुआ जो
कविताओं को विधाओं
के बंधनों से मुक्त
कर दिया,,।
मात्राओं,तुक, लय
की कीलों पर,
चुभती मोटी नारियल
की रस्सियों सी
सामाजिक विद्रुपताओं
को कैसे अटकाया जाए??
भरे पड़े हैं मनोद्गार
गागर में सागर से
बहुत तेज प्रवाह
बह रहे हैं अतुकान्त
स्वतंत्र,निर्बाध, निर्झर,
चलो अच्छा हुआ जो
कविताओं को विधाओं
के बंधनों से मुक्त कर दिया।
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