(चित्राभार इन्टरनेट)
नरम हरी घास,रात की शबनम से धुली धुली,,,,। सरदियों की शुरूवाती गुनगुनाहट लिए इतराता सूरज,,,,,माहौल में एक अलसाया पन,,,,। परिंदों की चहचहाहट जैसे कह रही हो उठ जाओ,,पर दिल नही चाहता नरम घास के बिछौने को तजना।
ऊहूँऽऽऽऽऽऽ का एक अनमना सा जवाब दे तीन-चार ढुलकियों के साथ बदन को बिस्तर पर लुढ़का कर,,, फिर से स्थिर हो कुछ पल औंधे मुँह पड़ा रहता है। आंखों की पलकें बार बार झपकती हुई,,,,, मन कुछ सोचता हुआ,,, अचानक नलिनी एक स्पूर्ति का अनुभव कर बाईं हथेली पर अपने चेहरे को टिका,, खिड़की के बाहर निहारने लगती है,,,,। विनोद का एहसास कुछ ऐसी ही प्रभाती मुलायमियत लिए नलिनी के चेहरे पर एक सौम्य मुस्कुराहट बिखेर जाता था।
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नलिनी का जीवन विनोद से जुड़ने के बाद एक रोमांचक उपन्यास सा बन गया है। जिसकी हर पंक्ति खिलखिलाती सुबह सी,, हर परिच्छेद चिलचिलाती तपती दोपहरी ,,हर पृष्ठ सुबकती रात सा और हर अध्याय एक कौतूहल पूर्ण नवीनता लिए हुए है।
जीवन से लेकर मृत्यु तक एक समग्र निश्चित सफर के बीच में भी हम कितने छोटे बड़े सफर तय करते हैं,,,,,,,। हर सफर का एक निश्चित पड़ाव भी होता है। परन्तु विनोद और नलिनी के सफर का कोई पड़ाव स्थूल रूप में नज़र तो नही आता,,,परन्तु दो किनारों के बीच बहती नदिया सा एक जुड़ाव अवश्य है। सब कुछ है भी और नही भी,,,,,,।
जब कभी नलिनी विनोद से अपने इस अद्भुत रिश्ते का आधार पूछती है तो विनोद इसे आत्मिक मिलन का नाम दे देता है,,,,।
नलिनी इस रिश्ते का रूप,गुण,आकार-प्रकार पूछती है तो,,,विनोद कहता है,,,-" नदी उद्गम के बाद जब पहाड़ों में रहती है तो चट्टानों को तोड़ फोड़ नया रास्ता बना लेती है पर जब मैदान में आती है तब ढर्रे पर चलती है। बस तटबंध तोड़ती है। हम मैदानी नदी हैं। " बड़ा अद्भुत,,,,बड़ा अनोखा,,अदृश्य परन्तु दृश्यमान,,,,,,,,,,,,।
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बहाव के साथ एक ठहराव लिए,,, हर क्षण में एक छोटी कहानी बन जाती है। कई छोटी-छोटी कहानियां मिल एक उपन्यास बन जाता है।
अभी नलिनी और विनोद के जुड़ाव के इस सफर में छोटी छोटी कहानियां जन्म ले रही हैं। जैसे कि आज ,, एक अलसाई सुबह ने ,, नरम घास के बिछौने पर पड़े नलिनी ने आपको सुनाई।
जानती हूँ आप भी पूरा उपन्यास पढ़ने को आतुर हो गए होगें,,,,,,,ठीक मेरी तरह,,,,,,। मै क्या नलिनी भी कभी-कभी बहुत बेकल हो जाती है,, अपने और विनोद के रिश्ते का भविष्य जानने को,,,,,। पर यह उसके बस में नही,, क्योंकि दोनो को मिलकर रचना है आगे का अध्याय,,,, ।
यह कहानी शुरू तो कर दी मैने,,,,पर अंजाम तक पहुँचाने के लिए मुझे अपने पात्रों संग सम्पर्क साधे रखना होगा।
एक राज़ की बात बताऊँ तो मैं चाहती नही इस कहानी को कोई अंजाम देना,,,,,,,,नलिनी और विनोद भी नही चाहते,,क्योकि उनकी नित निर्मित अनेकों कहानियां उन्हे संबल प्रदान करती हैं। जीवन संघर्ष में ऊर्जा का संचार करती हैं।
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बहुत देर तक हथेली पर अपने चेहरे को टिकाए रहने से, कलाई में हुए हल्के से दर्द ने नलिनी की तन्द्रा भंग कर दी। उसने देखा कि सूरज बड़ी चौड़ी तपन लिए चमक रहा था। घड़ी कि सुइयां टिकटिका कर यह कह रही थीं अब तो उठना ही पड़ेगा। अतः नलिनी ने विनोद के एहसास को अपने खुले बालों में लपेट एक क्लचर से अटका लिया । और एक नए जोश के साथ उठ पड़ी,,,,,।
मै भी अपनी लेखनी को विराम दे रही हूँ इस आस के साथ , कि ,,,,,,,, कल कुछ नये एहसास लिखूँ और 'एक क्षण' के इन जज्बातों को एक छोटी कहानी में समेट सकूँ,,,,,।
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