गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

मेरे आत्मअंश,,,,

                         (चित्राभार इन्टरनेट)

तुम
मात्र आभास
नही हो,,,
पर तुम
मेरे पास
भी नही हो,,,

कैसे तुम्हे
बखानूँ,,?
तुम शब्दों
से परे,,,
मात्र अनुभूतियों
का उच्छावास
नही हो,,,,

तुम
निराकार
भी नही हो,,
तो,साकार
भी नही हो,,,

मैं खींचती
हूँ तुम्हारा
आकार
अपनी परिकल्पनाओं
की तूलिका से,,
भरती हूँ रंग
अपनी प्रेमाकुल
अभिव्यक्तियों से,,
फिर कैसे कहूँ,,
कि,,,,,,,
तुम साकार
नही हो,,,?

तुम जगमगता
एक प्रकाश-पुंज,,!
मेरी आत्मखोह
के गर्भ में,,,
मेरे भौतिक
स्पर्श से परे,,
पर,,,मेरा आत्म
स्पर्शित तुमसे,,,,,

तुम
मेरे आत्म-संगी
मेरा अर्द्धांश
मैं विकसित कर
रही 'स्व' को
तुमसे एकाकार
होने को,,,,

हे चैतन्य!!
मेरी चेतना संग
वास करो,,,
तुममे सर्वस्य
स्वाहः करो,,
प्रेम कुंड की
हवन अग्नि में
तुम संग
आत्मसात करो,,,,
परमात्म से
साक्षात् करो,,,,

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