(चित्राभार इन्टरनेट)
पिय बिन रचना
बोलत नाही,
पट हिरदय के
खोलत नाही।
कुंज कंवल के
रवि मुख ताकैं
नटखट मुसिकाएं
कछु बोलत नाही।
पुष्पपात से ढकि
रहे ताल,
लहरन की गति
दीखै नाही
कहो कैसे मैं भाव
दिखाऊँ?
शब्दजाल अब
बुनते नाहीं,
प्रिय बिनु रचना
बोलत नाहीं ।
बढ़ि बढ़ि उचकैं
पंखुरि फैला करिं
पिय मुख सम्मुख
पावत नाहीं,,
भये उदास,
टूटत है आस,
प्यास मिलन
की तरतै नाही,
प्रिय बिनु रचना
बोलत नाही।
पट हिरदय के
खोलत नाहीं।
लिली
पिय बिन रचना
बोलत नाही,
पट हिरदय के
खोलत नाही।
कुंज कंवल के
रवि मुख ताकैं
नटखट मुसिकाएं
कछु बोलत नाही।
पुष्पपात से ढकि
रहे ताल,
लहरन की गति
दीखै नाही
कहो कैसे मैं भाव
दिखाऊँ?
शब्दजाल अब
बुनते नाहीं,
प्रिय बिनु रचना
बोलत नाहीं ।
बढ़ि बढ़ि उचकैं
पंखुरि फैला करिं
पिय मुख सम्मुख
पावत नाहीं,,
भये उदास,
टूटत है आस,
प्यास मिलन
की तरतै नाही,
प्रिय बिनु रचना
बोलत नाही।
पट हिरदय के
खोलत नाहीं।
लिली
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