गुरुवार, 20 जुलाई 2017

क्या गलत करती हूँ मै,,,,,,,,?

                              (चित्र इन्टरनेट से)

🌺मै परीकथाएं लिखती हूँ,क्योंकि जीवन का 15% यथार्थ, 85%कल्पनाओं की परीकथा से ही संवरता है,,और मुझे अपना यथार्थ भी परीकथाओं सा स्वप्निल चाहिए🌺


कहीं किसी ने कहा मेरी रचनाओं को पढ़कर-"खूब परी-कथाएं लिखिए" !!
तब से सोचती हूँ हर रोज़,,



क्या गलत करती हूँ जो,
हर तरफ लगी संम्प्रदायिकता की आग पर,
मै कुछ कोमल कल्पनाओं की
हल्की फुहार डाल,तपिश को 
कम करने की कोशिश करती हूँ???

क्या ग़लत करती हूँ जो,,
इस प्रतियोगिता के दौर मे,अपने साथी
को ही पीछे छोड़ने की होड़ में,
मै कुछ मधुर-मिलन की चांदनी रात्रि
की ज्योत्सना बिखरने की कोशिश करती हूँ,,,,??

क्या गलत करती हूँ जो बिना बारिश
के फटती ज़मीन के दर्द को, सावनी
कजरी से पाटने की कोशिश करती हूँ,,???

क्या गलत करती हूँ जो बारिश मे डह
गई गरीब की झोपड़ी के अवशेषों को
स्वप्न महलों की नींव से गढ़ती हूँ,,,??

क्या गलत करती हूँ जो धर्म के नाम पर,
इंसानियत को काटने वाले खंजर 
के जख्मों को प्रेमगीत के मोर पंखों से
सहलाने की कोशिश करती हूँ,,,??

क्या गलत करती हूँ जो नारी मन 
को रौंदकर गुजरते क्रूर सामाजिक 
अश्वारोहियों की दमघोटूँ धूल से बचने 
के लिए, नारी स्वाभिमान का 
सांस लेता आसमान देखने की कोशिश
करती हूँ,,,????

आप ही बताइए,हर तरफ फैली विद्रुपताओं,
कुप्रथाओं,जटिलताओं से कुछ पल के लिए राहत देती,अन्तर्मनी बातों की परीकथाएं 
लिखने की कोशिश करती हूँ, तो मैं, 
क्या गलत करती हूँ,,????


1 टिप्पणी:

  1. जब हर तरफ स्वार्थ,सत्ता और सब कुछ मेरा की भावना हो और आधुनिकता की दौड़ बस काम और पैसा के नहर से गुजर रही हो उसमें प्यार की शब्दमयी पुकार समाज में निखार लाती है। सराहनीय प्रयास।

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