शनिवार, 22 जुलाई 2017

सफर मे हमसफर की तलाश,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)
 *******लघुकथा****

'नवोदित यौवन' उम्र का एक अद्भुत एहसास,,,एक छोटे मेमने सा जो कौतुहलवश इधर-उधर बौराया सा कूलाचें भरता रहता है। मन मे उठती हैं कितनी नवयौवनी तंरगें,,हर तरफ एक तलाश लिए,,। कुछ ऐसी ही मेमने सी कौतूहली कूलाचें उठती थीं साक्षी के मन में।


 बी ए प्रथम वर्ष इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे प्रवेश पाया। पिता रेलवे कर्मचारी मिर्ज़ापुर के पास चुनार रेलवे स्टेशन पर ,स्टेशन अधीक्षक के पद पर कार्यरत।
      अतः पढ़ाई हेतु साक्षी को 'हास्टल' मे रहने पड़ा।परिवार से अलग, नए दोस्त, नया परिवेश,एक अद्भुत स्वतंत्र वातावरण की अनुभूति साक्षी को आनंदित कर रही थी। अक्सर छुट्टियों मे वह प्रयाग स्टेशन से चलने वाली पैसेन्जर ट्रेन से घर अकेले ही आ जाया करती थी।

अकेले ट्रेनयात्रा करना उसके लिए बड़ा रोमांचकारी होता था। जिसको वह पूरी शिद्दत से जीती थी।

        कुछ हल्के-फुल्के गुदगुदाते किस्से हो जाया करते थे। किसी चेहरे पर नज़र टिक जाती थी,,,या किसीकी नज़र उसके चहरे पर ठहर जाती थी।

होता कुछ भी ना था बस, कुछ चुलबुलाती हसरतें मचल जाती थी। नए-नवेले यौवन की मस्ती झलक जाती थी। गंतव्य स्टेशन के आते ही सारी मस्तियां, यादें बन आंखों मे बस जाती थीं।
      साक्षी इन किस्सों को बड़े उत्साह और व्यग्रता के साथ मन मे संजो कर रखती थी।हाॅस्टल लौट कर जब तक अपनी सखियों से इसकी चर्चा कर के चटपटे-चुटीले,,ठहाकों के साथ सुना  ना लेती,,तब तक उसकी वह रोमांचक यात्रा समाप्त नही होती थी।
     एक ऐसा ही साक्षी का सुनाया किस्सा पता नही कैसे जहन मे तरंगित हो उठा सोचा लिख लूँ ,,,,।

शायद दशहरे की छुट्टियां हुई थी,,,, ठीक से याद नही पर वह अपना बैग रात मे ,पैक कर सुबह सात बजे ही प्रयाग स्टेशन के लिए निकल पड़ी। महिला-छात्रावास से काफी करीब था पैदल जाया जा सकता था।
      अक्सर पैदल ही जाती थी साथ मे उसकी रूम मेट रोमा भी जाती थी। पैदल जाने का एक विशेष और नटखटी कारण होता था। सुबह-सुबह आस-पास के पुरूष-छात्रावास के लड़के 'लल्लाचुंगी' पर चाय पीने आते थे। चाय की चुसकियों के साथ 'नयनसुख' दोनो तरफ से भरपूर उठाया जाता था।
       शरारती खुसुर-फुसुर दोनो तरफ हुआ करती थी। ऐसा भी होता था कभी-कभी कोई मनचली टोली स्टेशन तक पीछे-पीछे चली चलती और ट्रेन तक बिठा आती। संवाद आपस मे ही होते थे पर इतना मद्धम की आगे चल रही बालाओं के कान तक पहुँच जाएं।
यदि युवतियां की खनकती हंसीं ,दबी सी आवाज़ मे निकल गई तो टोली की सुबह बन जाती थी।
       तो बस इसी तरह थोड़े दूर की यह चुलबुली यात्रा एक खलबली एक रोमांच के साथ समाप्त हो जाती।
   खैर साक्षी की गाड़ी आ गई वह रोमा को बाय बोलकर बैठ गई। ट्रेन पर बैठते ही एक सरसरी निगाह से टटोल लिया शायद को हमसफर मिल जाए इस दो,ढाई घंटे के सफर मे तो एक नया किस्सा मिल जाएगा अपनी सखियों संग चटखारे मार सुनाने को।
      चेहरे पर एक मासूमियत थी साक्षी के ,जो बरबस ही किसी को भी आकर्षित करने की क्षमता रखती थी। अपनी ही धुन मे मस्त साक्षी को एक आभास हुआ कि- उसकी सीट के सामने ही एक नवयुवक बड़ी देर से उसे निहारे जा रहा है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य ही है शायद के जब कोई आपको ही देखता है एकटक निगाहों से तो मन भांप ही लेता है।
      साक्षी उस नवयुवक की उस अपलक निहार से थोड़ी असहज सी हो गई। उसने अपने बैग से 'इंडिया-टुडे' मैग्ज़ीन निकाली और पन्नों को बड़ी गम्भीर मुद्रा बना इधर-उधर पलटने लगी।
   इन भावों का प्रदर्शन मात्र एक दिखावा ही था।असल मे मन मे एक झनक सी उठ चुकी थी। चेहरे को किताब की आड़ में छुपा कर यह देखने का प्रयास की वह युवक उसे देख रहा है ,,या नही?।
       महाशय की नज़र तो मानों गीली मिट्टी में अन्दर तक खूँटे के भांति धंस गई थी। अब वे हल्की मदमाती मुस्कान भी देने लगे थे।
   नयनो का टकराना,लजाना,और झुक जाने तक का सफर तय कर लिया था इस सफर ने।साक्षी भी अभिभूत हो रही थी इन क्षणों की उल्लासी कोमलता से।
       पता नही कैसे और कब समय बितता गया,,अचानक से 'वह' अपनी सीट से उठ साक्षी की तरफ बढ़ा।
   उसके हर कदम के साथ साक्षी के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी।उसको लगा कहीं कलेजा बाहर ही ना निकल आए। 'वह' बड़ी शालीनता से साक्षी के सामने रूका,,,मुस्कुराती आंखों से उसकी ओर देखते हुए बोला-' क्या मै आपकी यह मैग्ज़ीन ले सकता हूँ?" साक्षी का कलेजा गले पर आकर जैसे अटक चुका था, घबराहट से जैसे हाथ-पांव ठंडे हो गए थे।
      उसके मुहँ से निकला-'जी ज़रूर',इतना कहकर मैग्ज़ीन उस युवक की तरफ बढ़ा दी। एक मनभावनी मुस्कान के साथ वह किताब लेकर वापस अपनी सीट पर बैठ गया। साक्षी ने एक गहरी सांस छोड़ थोड़ा सामान्य होने के लिए ट्रेन की खिड़की से बाहर देखना शुरू कर दिया। जैसे किसी तुफान से बाहर आई हो।
       पर मन गुहार लगाने लगा,,,देखले जी भर के इस सफर के हमसफर को,,अभी तो मंज़िल आ जाएगी,,फिर तू कहां?? और वो कहां???
    साक्षी ने तुरन्त गरदन उसकी तरफ मोड़ ली,, वह कुछ लिख रहा था किताब पर। कुछ अटकलें,,कुछ कौतूहल फिर से कूदने लगा,,, "क्या लिख रहा होगा???"
       थोड़ी ही देर में वह अपना सामान उठा साक्षी की तरफ बढ़ने लगा,,शायद उसका स्टेशन आने वाला था। किताब साक्षी को पकड़ाई और एक अविस्मरणीय मुस्कुराहट के साथ बड़े विनम्र शब्दों में "धन्यवाद" बोलकर वह गेट की तरफ चल पड़ा। ट्रेन रूकी मिर्ज़ापुर स्टेशन पर और वह उतर गया।
      साक्षी ने सबसे पहले मैग्ज़ीन का वह पन्ना खोजा जहाँ,, वह कुछ लिख गया था। एक पृष्ठ खुला जिसपर बड़ी सुन्दर लिखावट के साथ एक फोन नम्बर(जो अब याद नही आ रहा) लिखा था-

 "आपके चेहरे की मासूमियत और मुस्कुराहट दोनों बहुत मुलायम हैं,,,,,,,इसे यूँ ही सजाएं रखिएगा। कभी मन करे तो फोन ज़रूर कीजिए गा,,,
                   समरेन्द्र"

कई बार इन मोतियों जड़ित भावों को पढ़ती रही साक्षी। मन ही मन आनंदित होती रही।पर उसने अपने भीतर की गुदगुदाहट को चेहरे पर आने से रोके रखा।
   चुनार स्टेशन तक का सफर इन्ही भावनाओं की लहरों मे बहते हुए कट गया। वह भी अपने गर चली गई। कई किस्सों मे एक यह भी किस्सा जुड़ गया।
    सहेलियों को खूब चटखारे लेकर कुछ मन गढ़तं संशोधनों के साथ यह किस्सा सुनाया गया।
 कई सालों तक साक्षी ने उस 'इन्डिया टुडे' को सहेज कर रखा। अक्सर निकाल कर एक मीठी मुस्कान के साथ वह संदेस पढ़ लेती थी। फोन नम्बर को भी बस देख लेती।
    शायद 'वह अजनबी' फोन का इन्तेज़ार करता रहा हो?

      अंत मे बस इतना ही,,,,,,, सफर मे एक हमसफर की तलाश सभी को है, जो मिल गया तो अच्छा,,जो नही मिला तो,,तलाश जारी है दोस्त,,,,,,

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी...मन को गुदगुदाने वाली..चुलबुली सी रचना...अल्हड युवा मन को सही टटोला है

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  2. Aisi unginat sakshi thi uss chhatrawas mei... Lallachungi wala safar to sabne jis hae 😂
    Bahut hi pyara likha hae

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  3. शब्दों का चयन बहुत अच्छा करती हो लिली मेरा मन तो तुम्हारी हर रचना में खो जाता है ।

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  4. ये समरेन्द्र भी ना... साक्षी का फोन नम्बर भी ले लेता।वैसे साक्षी ने अब तक फोन क्यों नही किया😥 ऐसे कितने चुलबुले सवाल चटखारे ले रहे है अंतर्मन में सखी और उनको विराम तुम ही दोगी अगली कथा में 😍 खो सी जाती हूँ तेरी कहानियों में

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  5. Yuva mn..aur navyuvak yuvtiyon k mnbhavon ko steekta se drshati ye kahaani boht sunder hai...

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  6. Yuva mn..aur navyuvak yuvtiyon k mnbhavon ko steekta se drshati ye kahaani boht sunder hai...

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