सोमवार, 24 जुलाई 2017

गीत मिलन के गाती हूँ,,

                                (चित्र इन्टरनेट से)

मै गीत मिलन के
गाती हूँ
अन्तस से तुमको
ध्याती हूँ
हे देव मेरे मन
मन्दिर के
मै प्रीत का दीप
जलाती हूँ।

अब मन बगिया मे
बसते तुम
रजनीगंधा से
महके तुम
मै गंध मे सुध-बुध
खोती हूँ
मदमस्त उसी
मे रहती हूँ।

जब से तुम जीवन
आधार बने
बहती नदिया की
धार बने
मै नइय्या तुम
पतवार बने
मै तुम संग बहती
रहती हूँ।

मनमीत की मै
मनुहार बनूँ
कहो कब तुमसे
अभिसार करूँ
श्रृंगार करे मै
बैठी हूँ
लोक-लाज तज
पैठी हूँ।

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