रविवार, 23 जुलाई 2017

ऐ टमाटर,,,😢

(चित्र इन्टरनेट से)

🍅🍅कभी हम तेरी चटनी बनाकर खाते थे😟🍅🍅🍅
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बाज़ारों मे टमाटरों🍅 की क़ीमत ने मेरी रचना मे भी अपनी एक अहमियत बना ली है। अब किसी विषय पर कोई वज़नदार बात कहनी होती है तो मै मिसाल के तौर पर 'टमाटर' को उपयोग करने की जी तोड़ कोशिश करती हूँ,,,,। क्या करूँ व्यंजनों में ना सही रचनाओं मे ही कर लूँ। टमाटरों के बढ़ते भाव ने हमारी औकात को ठेंगा दिखाना शुरू कर दिया है।
        कभी अकेले मे टमाटर से रू-ब-रू हो जाऊँ तो किसी छोटे बच्चे की तरह 'टमाटर' मुझे जीभ निकाल कर,, नाक के उपर अंगूठा टिका,,अपनी हथेलियों को हथपंखें सा हिला कर ,,, टी-ली-ली-ली-ली कर के चिढ़ाता है।
      इसलिए आजकल जब फ्रिज से टमाटर निकालना होता है तो,,,ना तो मै उससे नज़रे चार करती हूँ,,ना ही जी भर के हुस्ने दीदार करती हूँ। बड़े आदर के साथ दो की जगह एक ही निकालती हूँ और सब्जी में डाल कर अपने नसीब पर ग़ुमान करती हूँ।
         किसी नारी के माथे पर लगी बड़ी लाल बिन्दिया को अब 'ब्रह्मांण का सूर्य' नही 'सूर्ख लाल गोल टमाटर' की उपमा से सम्मान करती हूँ।
          अब किसी सुन्दरी को फेसबुकी डी पी मे लाल परिधान मे दमक मारती देख मै 'रेड हाॅट ब्यूटी' जैसी  सामान्य टिप्पणी नही,, क्या 'लाल टमाटर सी चमक रही हो,,!!!!!'  जैसी बहुमूल्य टिप्पणी देती हूँ। अपनी लाल परिधान वाली फोटो को डी पी बनाने का एकमात्र उद्देश्य 'टमाटर जी' के प्रति अपनी श्रद्धा,निष्ठा और आदर व्यक्त करना है।
      बदकिस्मती से 'सड़े गए टमाटर' को कूड़ेदान मे फेंकने से पहले मै काटकर, सूंघकर,अलट-पलट कर अच्छे से निरीक्षण कर लेती हूँ,,,,,,,, शायद कहीं से ,,,, अच्छा निकल जाए,,,।
  आज टमाटरों के बढ़ते भाव मुझे भावुक कर रहे हैं,,,😢 अपनी व्यथा कि अभिव्यक्ति में 'कविगुरू रविन्द्रनाथ टैगोर जी ' की रचना गाने लगा मन,,,,,,,
हाय रे,, हाय रे
बैथाए कॅथा
जाय डूबे जाय,,
जाय रे,,,,,,,,,,,,,!'😩😩
(दर्द के दर्दमयी सागर मे मेरी बातें डूबती जा रही ,,,,)

हाय रे टमाटर !!!!!!🍅

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