रविवार, 30 जुलाई 2017

सूरजमुखी ,,

                      ( चित्र मेरे सुपुत्र गुल्लू जी की सौजन्य)

दिन की शुभकामनाओं के
साथ सूरजमुखी दे गए आप,,,
एक जलता हुआ आग का
गोला बना गए आप,,

ठीक ही तो किया खुद को मेरे
जलते वजूद से दूर कर लिया,
खुद को एक फूल बनाकर
जीवन सहज कर लिया,,

सूरज कहाँ रोता है?
वह तो बस जलता है,,
और जलता है,,,
आपको रोने का पूरा
अधिकार है,मेरी आग से
आपका क्या सरोकार है?

मेरी तरफ कर के रूख
दूर से ही खुद को सेंकते रहिए,,
रोज़ नई उम्मीदी कली के
साथ खुद को सींचते रहिए,,

आज सूरज की बेबसी को
समझा है मैने खूब,,
जलन ना हुई शांत कई बार
समन्दर मे वह चुका डूब,,

मै खुश हूँ खुद के अस्तित्व
रूपी सूरज को जलाकर,,
दम रखती हूँ कई सूरजमुखियों
को नित नई ऊर्जा से दमकाकर,


बहा दो चाहे जितने मेरी बेवफाई
के काव्यमयी सागर,
सुखा कर तुम्हारे आंसूओं को
मै ही बनाऊँगी नए बादल,,

बरसेगी मेरी ही प्रीत तुमपर
 सावनी घटा के साथ,,
खिलोगे तुम हरबार
एक नई अदा के साथ,,

मेरे प्यारे सूरजमुखी मै तो
बस तुम्हारे लिए ही जलूँ,,
तुम्हारी पीतवर्णी आभा
की प्रीत मे,मै रचूँ बसूँ ढलूँ,,

लिली

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